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नेपाल की भू-राजनीतिक जंग: अमेरिकी सहायता संकट, चीन की चालें और ऊर्जा की दौड़

"नेपाल की ऊर्जा क्रांति: जलविद्युत से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता कदम, BII और सानिमा बैंक की साझेदारी से स्वच्छ ऊर्जा को मिलेगा बढ़ावा"

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नई दिल्ली । नेपाल की महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचा विकास योजनाओं को एक अप्रत्याशित झटका लगा है। ट्रंप प्रशासन द्वारा कम से कम 90 दिनों के लिए विदेशी सहायता स्थगित करने के निर्णय ने मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (MCC) के तहत $500 मिलियन की अनुदान योजना को अनिश्चितता में डाल दिया है। यह वित्तीय सहायता, जिसे नेपाल ने 2022 में भारी घरेलू विरोध के बावजूद मंजूरी दी थी, महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए थी, जिसमें भारत को ऊर्जा निर्यात की सुविधा के लिए 320 किलोमीटर की विद्युत ट्रांसमिशन लाइन और प्रमुख सड़क नेटवर्क सुधार शामिल थे।

चीन की कूटनीतिक चालें और नेपाल की असमंजस

अब, जब MCC फंडिंग अधर में लटकी हुई है, काठमांडू एक कठिन दुविधा का सामना कर रहा है। सहायता स्थगन ने इस आशंका को जन्म दिया है कि चीन इस स्थिति का लाभ उठाकर नेपाल में अपना भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ा सकता है। चीन लंबे समय से MCC समझौते को लेकर संदेह में रहा है। चीनी विदेश मंत्रालय के अनुसार, यह केवल एक ‘घोड़े की चाल’ हो सकती है जिससे अमेरिका नेपाल में अपना सैन्य प्रभाव बढ़ा सके।

पिछले कुछ वर्षों में नेपाल को चीन से मिलने वाले निवेश में 30% की वृद्धि हुई है, जबकि अमेरिकी निवेश में गिरावट देखी गई है। ऐसे में अमेरिकी सहायता रोकने के फैसले से चीन को अपनी पकड़ और मजबूत करने का मौका मिल सकता है।

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जलविद्युत से आत्मनिर्भरता की ओर नेपाल

इन भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद, नेपाल अपनी ऊर्जा विस्तार योजनाओं, विशेष रूप से जलविद्युत के प्रति प्रतिबद्ध बना हुआ है। 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल में जलविद्युत उत्पादन क्षमता 2GW से बढ़कर 5GW हो गई है, और 2035 तक इसे 15GW तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। इसी दिशा में, ब्रिटिश इंटरनेशनल इन्वेस्टमेंट (BII), जो कि यूके की विकास वित्त संस्था है, ने नेपाल के सानिमा बैंक के साथ $15 मिलियन का व्यापार ऋण समझौता किया है।

BII और नेपाल का ऊर्जा विस्तार समझौता

यह वित्त पोषण नेपाल की नवीकरणीय ऊर्जा महत्वाकांक्षाओं, विशेष रूप से जलविद्युत परियोजनाओं, साथ ही विनिर्माण, खाद्य और कृषि क्षेत्रों को समर्थन प्रदान करेगा। यह समझौता नेपाल की व्यापक रणनीति के साथ मेल खाता है, जिसका उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना और भारत तथा बांग्लादेश को बिजली निर्यात बढ़ाना है।

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ब्रिटिश राजदूत रॉब फेन ने कहा, “यह सहयोग नेपाल को अपने ऊर्जा संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करने में मदद करेगा, जिससे न केवल घरेलू बिजली संकट कम होगा बल्कि नेपाल के लिए एक आर्थिक अवसर भी बढ़ेगा।”

नेपाल के लिए आगे की रणनीति?

हालांकि MCC सहायता स्थगन ने कुछ बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को खतरे में डाल दिया है, लेकिन यह नेपाल के लिए वित्तीय साझेदारी में विविधता लाने के लिए एक चेतावनी संकेत के रूप में भी कार्य करता है। नेपाल को वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करते हुए ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देनी होगी।

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विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल को अब चीन, अमेरिका और अन्य निवेशकों के बीच एक संतुलन बनाना होगा, जिससे देश में दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित किया जा सके। क्या नेपाल एक स्वतंत्र आर्थिक और ऊर्जा नीति बना पाएगा, या वह अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के जाल में उलझ जाएगा? यह सवाल आने वाले वर्षों में नेपाल की विदेश नीति और आर्थिक विकास की दिशा तय करेगा।

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Aashish Tripathi

आशीष त्रिपाठी एक सीनियर डिजिटल कंटेंट प्रोड्यूसर हैं, जिन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय से जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातक और आईएमएस यूनिसन यूनिवर्सिटी से डिजिटल मार्केटिंग एवं सोशल मीडिया स्ट्रेटेजी में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत न्यूज में की, जिसके बाद द मैक्स ग्रुप और इन्शॉर्ट्स, डेली सोशल जैसे प्रतिष्ठित मीडिया और कॉरपोरेट संस्थानों में काम किया। वर्तमान में, वे दून खबर के ऑनलाइन डेस्क पर कार्यरत हैं। आशीष को अंतरराष्ट्रीय संबंध, कूटनीति, राजनीति और मनोरंजन की खबरों में गहरी रुचि है, और डिजिटल पत्रकारिता में लगभग 10 वर्षों का अनुभव है।

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