देहरादून, उत्तराखंड: दिल्ली की हवा एक बार फिर से जानलेवा स्तर तक प्रदूषित हो गई है। सर्दियों की शुरुआत के साथ ही शहर में धुंध और धुएं की चादर छा गई है, जिससे हवा की गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। सड़कों पर वाहनों का धुआं, पराली जलाने से फैला प्रदूषण, और उद्योगों से निकला धुआं मिलकर हवा को सांस लेने लायक नहीं छोड़ रहे हैं। इस बार का AQI फिर से “गंभीर” श्रेणी में आ चुका है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है।
वायु प्रदूषण के इस स्तर का प्रभाव सीधा स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। सांस की बीमारियों में इजाफा हुआ है, और बच्चों तथा बुजुर्गों के लिए बाहर निकलना बेहद खतरनाक हो गया है। हाल के स्वास्थ्य अध्ययनों से पता चला है कि दिल्ली के लोग वायु प्रदूषण के कारण औसतन 7-8 वर्ष कम जी रहे हैं। स्कूलों में बच्चों को बाहर के खेल-कूद पर प्रतिबंध लगाया गया है, और कुछ जगहों पर सरकारी दफ्तरों में काम का समय कम कर दिया गया है।
प्रदूषण नियंत्रण के लिए दिल्ली सरकार ने कई कदम उठाए हैं। गाड़ियों के लिए ऑड-ईवन योजना, निर्माण कार्यों पर अस्थायी प्रतिबंध, और प्रदूषण रोकने वाले टावरों की स्थापना जैसे उपाय लागू किए गए हैं। हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इन प्रयासों का असर सीमित है। जब तक प्रदूषण के स्रोतों को सही तरीके से नियंत्रित नहीं किया जाता, तब तक प्रदूषण में सुधार मुश्किल होगा।
दिल्लीवासियों के लिए यह समय सावधानी बरतने का है। डॉक्टर लोगों को मास्क पहनने, बाहर जाने से बचने और घरों में एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करने की सलाह दे रहे हैं। यदि तत्काल ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यह संकट और गहरा सकता है, जिससे न केवल दिल्ली बल्कि आस-पास के क्षेत्र भी प्रभावित होंगे।