देहरादून। उत्तराखंड में निकाय चुनावों का शोर थमने के बाद अब सहकारी चुनावों का बिगुल बज चुका है। राज्य में सहकारी समितियों के चुनावों की तैयारियाँ जोरों पर हैं। चुनावी जोड़-तोड़ की प्रक्रिया शुरू हो गई है, और राजनीतिक पार्टियाँ अब इन चुनावों में अपनी ताकत दिखाने के लिए जुट गई हैं।
सहकारी चुनावों से पहले, राज्य कैबिनेट ने सहकारी समितियों के चुनाव के नियमों में बदलाव किए हैं। इस बदलाव में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने पर जोर दिया गया है। इसके तहत, महिलाओं को सहकारी चुनावों में ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलेगा। इसके अलावा, चुनाव में शामिल होने के लिए अब तीन साल तक के लेन-देन की अनिवार्यता भी समाप्त कर दी गई है।
हालांकि, इस बदलाव के बाद कुछ समस्याएँ भी उठी हैं। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य के सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी को लेकर भेजे गए सुझावों पर रोक लगा दी है, और यह मामला कैबिनेट के निर्णय पर निर्भर करेगा।
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि सरकार जानबूझकर सहकारी चुनावों में देरी कर रही है, ताकि उसकी हार को टाला जा सके। खासकर कांग्रेस और किसान संगठन इसे सरकार की रणनीति मान रहे हैं, ताकि चुनाव परिणामों को प्रभावित किया जा सके।
इस सबके बीच, चुनावी माहौल में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं, और जल्द ही सहकारी चुनावों के लिए वोटिंग प्रक्रिया शुरू हो सकती है।