चिपको आंदोलन 2.0: उत्तराखंड में पेड़ों से चिपकीं महिलाएं, सड़कों पर उमड़ा हजारों पर्यावरण प्रेमियों का सैलाब

देहरादून । पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में एक बार फिर से पर्यावरण बचाने के लिए ऐतिहासिक चिपको आंदोलन की तर्ज पर प्रदर्शन हो रहा है। बड़ी संख्या में महिलाएं पेड़ों से चिपककर जंगलों को कटने से बचाने के लिए आगे आई हैं। इस आंदोलन को “चिपको आंदोलन 2.0” का नाम दिया जा रहा है, जिसमें स्थानीय ग्रामीणों के साथ-साथ पर्यावरण प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ता भी बड़ी संख्या में शामिल हो रहे हैं।
क्यों शुरू हुआ आंदोलन?
यह आंदोलन उत्तराखंड के कई इलाकों में जारी वृक्षों की कटाई और विकास परियोजनाओं के नाम पर जंगलों के विनाश के विरोध में शुरू हुआ है। खासतौर पर, यह विरोध पिथौरागढ़, टिहरी, और चमोली जिलों में तेज हो गया है, जहां सड़क निर्माण और अन्य परियोजनाओं के लिए भारी संख्या में पेड़ों को काटने की योजना बनाई गई है।
स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार बिना उचित पुनर्वास योजना के अंधाधुंध जंगलों को काट रही है, जिससे न केवल पर्यावरण को नुकसान होगा बल्कि जल स्रोतों पर भी बुरा असर पड़ेगा।
महिलाओं की अहम भूमिका
इस आंदोलन में महिलाओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। स्थानीय महिलाएं, जिन्होंने पहले भी चिपको आंदोलन (1973) में बढ़-चढ़कर भाग लिया था, अब फिर से अपने जंगलों को बचाने के लिए सामने आई हैं। उन्होंने पेड़ों को गले लगाकर प्रशासन को पेड़ों की कटाई से रोकने की कोशिश की है।
एक प्रदर्शनकारी महिला, लक्ष्मी देवी ने कहा,
“जंगल हमारे जीवन का आधार हैं। ये हमें पानी, हवा और जड़ी-बूटियां देते हैं। हम इन्हें कटने नहीं देंगे, चाहे कुछ भी हो जाए।”
आंदोलन का विस्तार
इस आंदोलन ने सोशल मीडिया पर भी काफी सपोर्ट जुटा लिया है। कई पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ता, और स्टूडेंट्स भी इस आंदोलन में शामिल हो गए हैं। राजधानी देहरादून और नैनीताल में भी समर्थन प्रदर्शन हुए हैं।
कई संगठनों ने सरकार से मांग की है कि बिना उचित पर्यावरणीय अध्ययन के किसी भी जंगल को काटने की अनुमति न दी जाए।
सरकार की प्रतिक्रिया
सरकार ने अब तक इस आंदोलन पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है, लेकिन अधिकारियों ने कहा है कि वे प्रदर्शनकारियों की मांगों पर विचार करेंगे और पर्यावरण को बचाने के लिए संतुलित नीति अपनाने की कोशिश करेंगे।