चारधाम यात्रा हेलीकॉप्टर हादसा: आस्था की उड़ान में क्यों बढ़ रहा है खतरा?
"हादसे ने उठाए सुरक्षा पर सवाल, श्रद्धालुओं की जान की कीमत पर नहीं चलनी चाहिए मुनाफे की होड़"

विचार
देहरादून । चारधाम यात्रा देश के करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मिक शांति का माध्यम है। उत्तराखंड के कठिन और दुर्गम इलाकों में बसे केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम तक पहुँचने के लिए श्रद्धालु हर साल लंबी यात्रा करते हैं। पिछले दो दशकों में हेलीकॉप्टर सेवाओं ने इस यात्रा को आसान बनाया, खासकर बुजुर्गों और बीमार यात्रियों के लिए। लेकिन हाल ही में उत्तरकाशी में हुए हेलीकॉप्टर हादसे ने पूरे सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सात यात्रियों को लेकर उड़ान भरने वाला हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें पायलट समेत पाँच लोगों की मौत हो गई और दो घायल हुए।
हेलीकॉप्टर सेवा की शुरुआत एक जरूरी सहूलियत के रूप में हुई थी, लेकिन समय के साथ यह लाभ का बड़ा ज़रिया बन गई। निजी कंपनियाँ बढ़ती माँग को भुनाने लगीं, और कई बार सुरक्षा मानकों से समझौता किया जाने लगा। पहाड़ी क्षेत्रों में उड़ानें अत्यंत चुनौतीपूर्ण होती हैं—अचानक बदलता मौसम, तेज हवाएँ, ऊँचाई का दबाव, और सीमित लैंडिंग स्पेस। इसके बावजूद हेलीकॉप्टर सेवाओं के लिए व्यापक प्रशिक्षण, नियमित जाँच और सतत निगरानी का अक्सर अभाव दिखाई देता है।
पिछले एक दशक में चारधाम मार्ग पर कई हेलीकॉप्टर हादसे हो चुके हैं। 2013 के केदारनाथ हादसे के बाद, जब रेस्क्यू हेलीकॉप्टरों पर भी खतरा मंडरा रहा था, तभी से विशेषज्ञों ने हेलीकॉप्टर सेवाओं में सुधार की आवश्यकता जताई थी। इसके बावजूद, आज भी व्यवस्थाएँ कागजों पर ज़्यादा और ज़मीन पर कम नज़र आती हैं।
सरकार ने मौसम की पूर्वानुमान प्रणाली, जीपीएस मॉनिटरिंग, और पायलटों की न्यूनतम पात्रता जैसी योजनाएँ बनाई हैं, लेकिन इनका पालन ढीला रहा है। समस्या यह है कि कंपनियाँ कम लागत में ज़्यादा यात्राएँ करना चाहती हैं, जिससे मेंटेनेंस और पायलटों की थकान जैसे मुद्दे नज़रअंदाज़ हो जाते हैं।
अब जरूरत है एक ठोस नीति की, जिसमें सभी हेलीकॉप्टर ऑपरेटरों की सख्त निगरानी हो, उड़ानों की संख्या सीमित की जाए, और प्रत्येक यात्रा से पहले सुरक्षा जांच को अनिवार्य किया जाए। यात्रियों को भी सुरक्षा निर्देशों से अवगत कराना होगा।
चारधाम यात्रा एक आस्था का मार्ग है, लेकिन आस्था की राह में जीवन से बड़ा कुछ नहीं। उत्तरकाशी हादसा हमें यह याद दिलाने आया है कि अगर हमने अब भी सबक नहीं लिया, तो श्रद्धा का यह पर्व, दुर्घटनाओं का सिलसिला बन जाएगा। अब समय आ गया है कि सुरक्षा, सेवा और श्रद्धा को एक साथ रखा जाए, ताकि भविष्य की यात्राएँ सचमुच राहत बनें, खतरा नहीं।
लेखक पेशेंस एक अनुभवी राजनीतिक रणनीतिकार और पत्रकार हैं, जिनका पत्रकारिता और राजनीतिक विश्लेषण के क्षेत्र में करीब एक दशक से अधिक का अनुभव है। वर्तमान में वे दून खबर के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं, जो उत्तराखंड और देशभर की प्रमुख घटनाओं और विश्लेषणों को प्रमुखता से प्रकाशित करता है। इसके अलावा लेखक देश और विदेश के कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, डिजिटल पोर्टलों और न्यूज़ चैनलों के लिए नियमित लेखन, विश्लेषण और राजनीतिक कमेंट्री करते हैं। लेखक की विशेषज्ञता सिर्फ राजनीतिक रणनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि वे अंतरराष्ट्रीय संबंधों और कूटनीति (International Relations and Diplomacy) में भी गहन अध्ययन कर रहे हैं। वर्तमान में वे इसी विषय में पीएचडी कर रहे हैं, जहाँ उनका शोध मुख्य रूप से बदलते वैश्विक राजनीतिक समीकरण, भारत की विदेश नीति, दक्षिण एशिया की रणनीतिक स्थिति और वैश्विक शासन में उभरती शक्तियों की भूमिका पर केंद्रित है। पत्रकारिता के क्षेत्र में लेखक ने अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर गहन रिपोर्टिंग और विश्लेषण प्रस्तुत किया है। चाहे चुनावी रणनीति हो, सामाजिक आंदोलन, विदेश नीति की पेचीदगियाँ या कूटनीतिक चर्चाएँ—लेखक का दृष्टिकोण तथ्यों और अनुभवों पर आधारित होता है, जो उन्हें अपने पाठकों और दर्शकों के बीच एक विश्वसनीय नाम बनाता है। इसके अतिरिक्त, लेखक युवा पत्रकारों के लिए मेंटरशिप और मीडिया प्रशिक्षण सत्रों का आयोजन भी करते हैं, जिससे आने वाली पीढ़ी को व्यावहारिक और मूल्यपरक पत्रकारिता की समझ मिल सके। उनके कार्यों में संतुलित दृष्टिकोण, शोधपरक विश्लेषण और जमीनी सच्चाइयों को उजागर करने की प्रतिबद्धता साफ झलकती है।