देहरादून। अंजना रावत की कहानी उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल की एक प्रेरणादायक कहानी है। एक समय था जब उन्होंने चाय की दुकान लगाई थी, और आज वह राजनीति में अपनी पहचान बना चुकी हैं। अंजना रावत का जीवन संघर्ष से भरा हुआ था। उनके पिता का निधन हो गया था, और परिवार की जिम्मेदारियों को संभालने के लिए उन्होंने महज 18 साल की उम्र में ‘चाय-चस्का’ नाम से चाय की दुकान शुरू की थी। इस दौरान उन्होंने शिक्षा को भी जारी रखा और समाजशास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की।
उनकी मेहनत और समाज सेवा के प्रति निष्ठा ने उन्हें सम्मान दिलाया। राज्य सरकार ने अंजना रावत को तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित किया, जो उत्तराखंड के संघर्षशील महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण पुरस्कार है।
अंजना ने हाल ही में हुए उत्तराखंड निकाय चुनाव में श्रीनगर नगर पालिका परिषद से पार्षद पद पर जीत हासिल की। उनकी यह सफलता इस बात का प्रतीक है कि सही दिशा में मेहनत करने और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण से कोई भी मुश्किल पार की जा सकती है।
अंजना रावत की यह यात्रा न केवल महिलाओं के लिए, बल्कि समाज के हर व्यक्ति के लिए प्रेरणास्त्रोत बन चुकी है।