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क्या बदलने जा रही है डाक विभाग की कार्यप्रणाली ? पढ़े पूरा मामला

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सोहन सिंह बिष्ट / देहरादून । क्या भारतीय डाक विभाग घाटे से उबरने के लिए निजीकरण की ओर बढ़ रहा है? भारत में डाक सेवाओं की शुरुआत 1854 में हुई थी, और उसी वर्ष अंग्रेजों ने रेल डाक सेवा की भी शुरुआत की थी। प्रारंभ में डाक और तार (टेलीग्राम) दो अलग-अलग विभाग थे, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध (1914) के दौरान इन्हें विलय कर दिया गया।

भारतीय डाक विभाग सिर्फ डाक सेवाओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि 1882 में डाकघर बचत बैंक की स्थापना के माध्यम से यह ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक व्यवस्था भी बना। समय के साथ 1877 में वीपीपी (वैल्यू पेबल पोस्ट) और पार्सल सेवा तथा 1879 में पोस्टकार्ड की शुरुआत की गई। हालांकि, संचार तकनीकों के विकास के कारण 2016 में 163 साल पुरानी तार सेवा बंद कर दी गई।

डाक प्रणाली भारतीय डाकघर अधिनियम, 1854 के तहत अस्तित्व में आई थी, और बाद में भारत ने समुद्री व हवाई डाक सेवाओं की भी शुरुआत की। हाल ही में, दिसंबर 2023 में डाकघर अधिनियम, 2023 लागू किया गया, जिसे एक लाभकारी कदम माना जा रहा है, लेकिन इससे डाक विभाग के मूल अस्तित्व को खतरा भी हो सकता है।

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डाक विभाग घाटे में, निजीकरण की ओर बढ़ता कदम?

भारतीय डाक विभाग ने 2018 में इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक (IPPB) लॉन्च किया, जो कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नियंत्रण में कार्य करता है, जबकि डाक विभाग भारत सरकार के अधीन है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में डाक विभाग को ₹23,103.56 करोड़ का घाटा हुआ, जो सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है।

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हाल ही में संसद में डाक विभाग को सार्वजनिक करने की योजना पर चर्चा हुई, लेकिन इसके पीछे का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है। सूत्रों के अनुसार, डाक विभाग अपनी बचत योजनाओं को इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक को सौंपने की दिशा में आगे बढ़ रहा है और डाक वितरण संबंधी कार्यों को निजी सेवाओं को सौंपने की योजना बना रहा है।

क्या BSNL की राह पर भारतीय डाक?

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यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि भारतीय डाक विभाग भी BSNL की तरह निजीकरण की ओर बढ़ सकता है। ऐसा लगता है कि डाक विभाग के घाटे और प्रशासनिक उदासीनता के चलते यह ऐतिहासिक सेवा केवल दस्तावेजों और इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह जाएगी।

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