नई दिल्ली: नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित जश्न-ए-रेख्ता का भव्य समापन हुआ। यह तीन दिवसीय महोत्सव उर्दू प्रेमियों के लिए साहित्य, संगीत और सांस्कृतिक धरोहर का अनूठा अनुभव लेकर आया। जश्न-ए-रेख्ता, जो उर्दू भाषा और संस्कृति का सबसे प्रतिष्ठित मंच बन चुका है, इसकी शुरुआत रेख्ता फाउंडेशन के संस्थापक संजीव सर्राफ ने की थी।
जश्न-ए-रेख्ता पहली बार 2015 में दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) से शुरू हुआ था। इसकी बढ़ती लोकप्रियता के चलते इसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, फिर मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम और अब जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित किया जाने लगा है। महोत्सव का उद्देश्य उर्दू भाषा, शायरी, संगीत और कला को नई पीढ़ी तक पहुंचाना है। संस्थापक संजीव सर्राफ का मानना है कि उर्दू को सिर्फ विद्वानों तक सीमित न रखकर आमजन के बीच ले जाना आवश्यक था।
मुख्य कार्यक्रम और प्रस्तुतियां:
- उद्घाटन समारोह: महोत्सव की शुरुआत सूफी संगीत से हुई, जिसमें पद्मश्री कैलाश खेर और उनके बैंड ‘कैलासा’ ने मंत्रमुग्ध कर देने वाला प्रदर्शन किया।
- शाम-ए-ग़ज़ल: प्रसिद्ध गायक पैपोन ने गज़लों के जरिए दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया।
- ‘रंगी सारी’: सूफी गायिका कविता सेठ ने अपनी आवाज़ से कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए।
- ‘मैं कोई ऐसा गीत गाऊं’: इस सत्र में जावेद अख्तर ने गीतों के पीछे की कहानियां साझा कीं, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।
- ‘इश्क से इबादत तक’: नृत्यांगना परनिया कुरैशी ने सूफी प्रेम और भक्ति को कुचिपुड़ी नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया।
रेख्ता फूड फेस्टिवल (ऐवान-ए-ज़ायका): मुग़लई, अवधी, कश्मीरी और हैदराबादी व्यंजनों ने दर्शकों को उर्दू संस्कृति के स्वाद से परिचित कराया। रेख्ता बुक्स बाज़ार: उर्दू साहित्य, सूफी लेखन और कविता की क्लासिक एवं समकालीन किताबें प्रदर्शित की गईं। रेख्ता बाज़ार: हस्तशिल्प, कलात्मक वस्तुएं और सांस्कृतिक उत्पादों ने उर्दू की समृद्ध धरोहर को जीवंत किया।
सेलिब्रिटी और कवियों की भागीदारी: 2015-2024 वर्षों में जश्न-ए-रेख्ता का मंच पीयूष मिश्रा, कैलाश खेर, पापोन, रेखा भारद्वाज, जावेद अख्तर, राहत इंदौरी, वसीम बरेलवी, कुमार विश्वास जैसे कलाकारों और कवियों की मेजबानी कर चुका है। इसके साथ ही, नसीरुद्दीन शाह, शबाना आज़मी, रत्ना पाठक शाह, स्वरा भास्कर, तापसी पन्नू जैसे अभिनेता भी इस आयोजन का हिस्सा रहे हैं।
संजीव सर्राफ का कहना है कि “जश्न-ए-रेख्ता कभी भी केवल एक साहित्यिक कार्यक्रम नहीं था। इसकी शुरुआत से ही साहित्य और लोकप्रिय सांस्कृतिक सामग्री का मिश्रण किया गया ताकि उर्दू भाषा को आमजन तक पहुंचाया जा सके।” तीन दिनों के इस महोत्सव में हजारों लोगों ने भाग लिया। साहित्य, संगीत और कला प्रेमियों ने इसे उर्दू भाषा का सबसे सुंदर और प्रेरणादायक मंच बताया, जिसने उर्दू की गहराई और विविधता को वैश्विक पहचान दिला
जश्न-ए-रेख्ता ने उर्दू भाषा और उसकी सांस्कृतिक विरासत को जीवंत बनाते हुए इसे एक नई ऊंचाई दी। यह महोत्सव उर्दू प्रेमियों के दिलों में एक खास जगह बना चुका है और उर्दू के संरक्षण व प्रचार का एक प्रेरणादायक माध्यम बन गया है। जश्न-ए-रेख्ता ने उर्दू को उसकी सुंदरता, साहित्य और सांस्कृतिक धरोहर के जरिए जन-जन तक पहुंचाकर एक बार फिर साबित किया कि यह केवल एक भाषा नहीं, बल्कि प्रेम, कला और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।