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देहरादून की सड़कों पर जीवन का संघर्ष: सड़क सुरक्षा की अनदेखी का नतीजा

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राबिन असवाल, देहरादून—कभी शांत पहाड़ी शहर के रूप में विख्यात, अब तेज रफ्तार, लापरवाह ड्राइविंग और कमजोर यातायात प्रबंधन के कारण सड़क दुर्घटनाओं का गढ़ बनता जा रहा है। हालिया घटनाएं न केवल चिंता पैदा करती हैं, बल्कि राज्य की यातायात सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं।

एक त्रासदी, जो सब कुछ बदल देती है

12 नवंबर की रात, देहरादून ने एक हृदयविदारक हादसा देखा, जब 19 से 24 वर्ष के छह युवाओं की दर्दनाक मृत्यु हुई। यह दुर्घटना एक कड़वा सच उजागर करती है—सड़क सुरक्षा नियमों की लगातार अनदेखी और प्रशासनिक विफलता।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ। इससे पहले, उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) के नेता त्रिवेंद्र सिंह पंवार की एक सड़क दुर्घटना में मौत ने भी राज्य में यातायात नियमों की कमजोरियों और सुरक्षा उपायों की कमी को रेखांकित किया।

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बदलता हुआ देहरादून

एक समय में शांत और व्यवस्थित देहरादून आज शहरीकरण, बढ़ती आबादी और बदलती जीवनशैली का दबाव झेल रहा है। वर्ष 2000 के बाद, शहर में नए विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों की स्थापना के साथ युवाओं का आगमन बढ़ा। इसके परिणामस्वरूप, राजपुर रोड जैसे क्षेत्र, जो पहले मसूरी के लिए एक आकर्षक मार्ग था, अब पबों, क्लबों और शराब की दुकानों के चलते एक जोखिमपूर्ण क्षेत्र में बदल चुका है।

संवेदनशीलता की कमी का अक्स

दुर्घटनाओं के बाद मदद करने की बजाय वीडियो रिकॉर्डिंग करना एक भयावह प्रवृत्ति बन चुकी है। यह संवेदनहीनता न केवल पीड़ितों की पीड़ा को बढ़ाती है, बल्कि हमारे समाज की गिरती नैतिकता का भी प्रतीक है।

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प्रशासन के प्रयास: नाकाफी लेकिन जरूरी

हालांकि प्रशासन ने कुछ कदम उठाए हैं, जैसे कि रात 11 बजे के बाद रेस्टोरेंट और पबों पर पाबंदी और पुलिस द्वारा वाहनों की सख्त जांच। लेकिन सड़क सुरक्षा के बुनियादी उपाय, जैसे प्रभावी स्ट्रीट लाइट्स और दुर्घटना-प्रवण क्षेत्रों में पुलिस की मौजूदगी, अब भी अधूरी है।

समाधान की ओर बढ़ते कदम

सड़क सुरक्षा केवल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है। सामुदायिक जागरूकता और सामूहिक प्रयास उतने ही महत्वपूर्ण हैं।

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  • युवाओं को शिक्षित करना: यातायात नियमों और सुरक्षित ड्राइविंग की जानकारी स्कूलों और कॉलेजों में दी जानी चाहिए।
  • सख्त प्रवर्तन: यातायात नियमों के उल्लंघन पर कठोर दंड लगाना आवश्यक है।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: हाई-रिस्क क्षेत्रों में सीसीटीवी और स्पीड मॉनिटरिंग सिस्टम का व्यापक उपयोग होना चाहिए।
  • सामाजिक भागीदारी: स्थानीय संगठनों और नागरिकों को सड़क सुरक्षा अभियानों में शामिल किया जाना चाहिए।

अंतिम विचार

देहरादून को उस शांत और सुरक्षित शहर में वापस लाने का समय आ गया है, जो यह कभी था। सड़क सुरक्षा के लिए एक मजबूत ढांचा न केवल प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए, बल्कि समाज का भी दायित्व है। यदि समय पर कार्रवाई नहीं की गई, तो सड़कें मौत के नए चौराहे बनती रहेंगी।


राबिन असवाल देहरादून, उत्तराखंड के एक प्रतिष्ठित अधिवक्ता और सामाजिक चिंतक हैं। आम जनता के अधिकारों और हितों की पैरवी में अग्रणी, वह अपने विचारों और सुझावों को सरकार और समाज के समक्ष प्रस्तुत करने में विश्वास रखते हैं। अपने लेखों के माध्यम से, वह सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाने और नीति-निर्माण में आम नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में कार्यरत हैं।

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