उत्तराखंड में जनवरी 2025 से लागू होगी समान नागरिक संहिता (UCC), समाज को नई दिशा देने की तैयारी
"समान नागरिक संहिता से समाज में आएगा बदलाव, महिलाओं और बच्चों के सशक्तिकरण को मिलेगा बढ़ावा"
देहरादून । उत्तराखंड में पहली बार समान नागरिक संहिता (UCC) जनवरी 2025 से लागू की जाएगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस ऐतिहासिक निर्णय की घोषणा करते हुए कहा कि सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। इस संहिता का उद्देश्य समाज को एक नई दिशा देना और महिलाओं एवं बच्चों के सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है। स्वतंत्रता के बाद उत्तराखंड ऐसा पहला राज्य होगा, जो समान नागरिक संहिता लागू करेगा।
मुख्य प्रावधान और बदलाव
समान नागरिक संहिता में महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक समानता को प्राथमिकता दी गई है। इसे चार खंडों में विभाजित किया गया है। विवाह और विवाह विच्छेद के प्रावधानों में विवाह का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। पति या पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरा विवाह पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। नियमों का पालन न करने वाले व्यक्तियों को सरकारी सुविधाओं से वंचित किया जा सकता है।
उत्तराधिकार के नियमों में महिला अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। सहवासी संबंध (लिव इन रिलेशनशिप) को भी इसमें शामिल किया गया है, जिसमें इस दौरान पैदा हुए बच्चों को जैविक संतान के समान अधिकार दिए जाएंगे। लिव-इन संबंध का पंजीकरण भी अनिवार्य किया गया है।
धर्म परिवर्तन के संदर्भ में यह प्रावधान किया गया है कि यदि दंपति में से कोई एक दूसरे की सहमति से धर्म परिवर्तन करता है, तो दूसरे व्यक्ति को तलाक और गुजारा भत्ता का अधिकार दिया जाएगा।
ऑनलाइन सुविधाएं और पोर्टल
मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए एक समर्पित पोर्टल और मोबाइल ऐप तैयार किया गया है। इसके माध्यम से पंजीकरण, अपील और अन्य सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध कराई जाएंगी। इससे जनता को अधिक सुविधा और पारदर्शिता मिलेगी।
उत्तराखंड की ऐतिहासिक पहल
यह कानून समाज को समानता और एकता की भावना से जोड़ते हुए नई दिशा देगा। महिलाओं और बच्चों के सशक्तिकरण के लिए यह संहिता विशेष रूप से कारगर साबित होगी। इसे प्रभावी रूप से लागू करने के लिए सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण दिया जा रहा है। साथ ही, सभी बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा रही हैं।
समाज में बदलाव की उम्मीद
उत्तराखंड सरकार के इस कदम से बहु विवाह, बाल विवाह, हलाला और तलाक जैसी कुरीतियों पर रोक लगेगी। यह निर्णय समाज में समानता और न्याय की भावना को मजबूती प्रदान करेगा और देवभूमि के नागरिकों को एक समान अधिकारों के साथ जीने का अवसर देगा।