रुद्रधारी मंदिर के पास आत्मनिर्भरता की मिसाल: आशु कंडपाल की प्रेरणादायक कहानी
"कैसे आशु कंडपाल की 23 साल की यात्रा ने रुद्रधारी मंदिर के पास के गांव को आत्मनिर्भरता की मिसाल बना दिया"
कौसानी । उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र का रुद्रधारी मंदिर अपनी आध्यात्मिक महत्ता और अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। कौसानी से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर, सोमेश्वर रेंज में एक झरने के पास छोटी गुफा में स्थित है। इसी क्षेत्र के काटली गाँव के आशु ने अपने साहस और मेहनत से एक ऐसा उदाहरण पेश किया है, जो पूरे समाज के लिए प्रेरणा बन चुका है। आशु , एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं। उनके गाँव में रोजगार के सीमित अवसरों के कारण अधिकांश युवा बड़े शहरों की ओर पलायन कर चुके थे। लेकिन आशु ने तय किया कि वह अपने गाँव में रहकर ही कुछ ऐसा करेंगे, जो न केवल उनकी पहचान बनाए, बल्कि गाँव के लिए भी फायदेमंद हो। रुद्रधारी मंदिर के पास रुकने, ठहरने की सुविधा की कमी को उन्होंने अपने सपने के रूप में देखा और यहीं से उनकी प्रेरणादायक यात्रा शुरू हुई।
आशु के पास बड़े सपने तो थे, लेकिन साधन सीमित थे। उन्होंने अपनी बचत और दोस्तों व परिवार से मदद लेकर होटल बनाने का निर्णय लिया। इसके साथ ही, उन्होंने सरकारी योजनाओं की जानकारी जुटाई और MSME योजना के तहत एक छोटा लोन भी प्राप्त किया। होटल निर्माण के लिए उन्होंने स्थानीय कारीगरों और पहाड़ी वास्तुकला का इस्तेमाल किया। उनका उद्देश्य था कि होटल के हर कोने में उत्तराखंड की संस्कृति और गर्मजोशी झलके। होटल का विशेष आकर्षण इसका घरेलू माहौल था। मेन्यू में स्थानीय पहाड़ी व्यंजनों को शामिल किया गया, जो पर्यटकों को घर जैसा एहसास दिलाते थे। सजावट में पारंपरिक हस्तशिल्प और कला का उपयोग हुआ, जिससे हर मेहमान उत्तराखंड की संस्कृति से जुड़ाव महसूस कर सके।
आशु ने होटल में स्थानीय युवाओं को रोजगार दिया और होटल के लिए सब्जियां व अन्य सामग्री भी गाँव के किसानों से खरीदी, जिससे उनकी आमदनी बढ़ी। यह होटल न केवल आशु का सपना था, बल्कि पूरे गाँव की तरक्की का माध्यम बन गया। हालांकि शुरुआत में चुनौतियाँ कम नहीं थीं। कभी पर्यटकों की संख्या कम होती, तो कभी मौसम का प्रभाव होटल व्यवसाय पर पड़ता। लेकिन आशु ने अपनी मेहनत और आत्मविश्वास से हर मुश्किल को पार किया। जब एक पर्यटक ने कहा, “यहां आकर हमें घर जैसा महसूस हुआ,” यह उनके लिए सबसे बड़ी सफलता थी। पहले साल में ही उन्होंने मुनाफा कमाया और अब वह अपने होटल का विस्तार करना चाहते हैं। वह ट्रेकिंग और कैंपिंग जैसी गतिविधियाँ शुरू करने की योजना बना रहे हैं, ताकि पर्यटक यहाँ प्रकृति का अधिक आनंद ले सकें।
आशु पिछले 23 वर्षों से अपने सपने को साकार करने में जुटे हुए हैं। इतने लंबे समय तक अपने गाँव और क्षेत्र के विकास के लिए कार्य करते हुए, उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि न केवल वह आत्मनिर्भर बनें, बल्कि उनके प्रयासों से उनके गाँव के अन्य लोगों को भी लाभ मिले। 23 साल की इस यात्रा में उन्होंने अपनी मेहनत, धैर्य और दूरदर्शिता से अपने सपनों को हकीकत में बदला है और एक मिसाल कायम की है।
आशु कंडपाल की कहानी आत्मनिर्भर भारत के सच्चे अर्थ को दर्शाती है। उन्होंने न केवल अपने लिए, बल्कि अपने गाँव के लिए भी विकास का रास्ता दिखाया। उनका कहना है, “अगर आपमें कुछ करने की लगन और मेहनत का जज्बा है, तो कोई भी मुश्किल आपको रोक नहीं सकती।” आज आशु कंडपाल का होटल सिर्फ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि प्रेरणा का प्रतीक बन चुका है। उनकी कहानी यह सिखाती है कि आत्मनिर्भरता एक यात्रा है, जिसे साहस, धैर्य और सही दृष्टिकोण से पूरा किया जा सकता है।