Uttarakhand: भू कानून…आधार कार्ड में दर्ज पते ने प्रदेश के कई लोगों को बनाया बाहरी, खतरे में पुश्तैनी जमीन

देहरादून । उत्तराखंड में हाल ही में भू-कानून के सख्त पालन के दौरान एक नई समस्या सामने आई है। आधार कार्ड में दर्ज पते के आधार पर राज्य प्रशासन ने कई स्थानीय निवासियों को बाहरी घोषित कर दिया है, जिससे उनकी पुश्तैनी जमीनों पर सरकारी कब्जे का खतरा मंडरा रहा है।
मुख्यमंत्री के निर्देश पर कार्रवाई: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर जिला प्रशासन ने भू-कानून का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने के लिए जांच अभियान शुरू किया है। देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल ने सभी उप-जिलाधिकारियों को आदेश दिया है कि वे भूमि खरीद में नियमों के उल्लंघन की जांच करें, विशेष रूप से 250 वर्ग मीटर से अधिक आवासीय या कृषि भूमि की खरीदारी पर ध्यान दें।
आधार कार्ड में पते का प्रभाव: जांच के दौरान यह पाया गया कि राज्य के कई निवासी, जो रोजगार या नौकरी के सिलसिले में बाहर गए थे, उन्होंने अपने आधार कार्ड में वहां के पते दर्ज करा लिए थे। प्रशासन ने इन पतों के आधार पर यह निर्धारित किया कि कौन राज्य का निवासी है और कौन बाहरी। इसके परिणामस्वरूप, कई स्थानीय लोगों की पुश्तैनी जमीनों पर सरकारी कब्जे का नोटिस जारी किया गया है।
नियमों का उल्लंघन और सरकारी कार्रवाई: जांच में सामने आया कि 200 हेक्टेयर से अधिक भूमि नियमों के विरुद्ध खरीदी गई थी। प्रशासन ने इन भूस्वामियों को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का अवसर दिया है। जिलाधिकारी सविन बंसल ने स्पष्ट किया है कि केवल उन्हीं लोगों की जमीन पर कब्जा किया जाएगा, जो राज्य से बाहर के निवासी साबित होंगे।
स्थानीय निवासियों की चिंताएं: राज्य के कई निवासी, जो बाहर रोजगार कर रहे हैं, अब अपनी पुश्तैनी जमीन बचाने के लिए दस्तावेजों के साथ प्रशासन के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करने में जुटे हैं। उनका कहना है कि उनकी जमीन उनके पूर्वजों की है और वे उत्तराखंड के असली निवासी हैं। हालांकि, आधार कार्ड में दर्ज बाहरी पतों ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
भू-कानून में हालिया संशोधन: उत्तराखंड विधानसभा ने हाल ही में भू-कानून में संशोधन को मंजूरी दी है, जिसके तहत राज्य के बाहर के व्यक्तियों को राज्य में कृषि भूमि खरीदने से पहले एक हलफनामा देना होगा, जिसमें वे यह पुष्टि करेंगे कि न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार ने आवासीय उद्देश्यों के लिए राज्य में कहीं और 250 वर्ग मीटर से अधिक जमीन खरीदी है। यह कदम राज्य की सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।
यह घटनाक्रम इस बात को उजागर करता है कि आधार कार्ड में पता बदलना, जो सामान्य प्रक्रिया मानी जाती है, भू-कानून के पालन के दौरान एक बड़ी बाधा बन गई है। राज्य सरकार को भू-कानून के साथ-साथ पहचान और निवास प्रमाण के मानकों की भी समीक्षा करनी चाहिए, ताकि वास्तविक उत्तराखंडी लोगों को अनावश्यक परेशानी से बचाया जा सके।